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संसार को प्रसन्न करना कठिन
Moral Story संसार को प्रसन्न करना कठिन:- एक बार एक पिता-पुत्र एक घोड़ा लेकर जा रहे थे। पुत्र ने पिता से कहा ‘‘आप घोड़े पर बैठें, मैं पैदल चलता हूं"। पिता घोडे़ पर बैठ गया। मार्ग से जाते समय लोग कहने लगे, ‘‘बाप निर्दयी है। पुत्र को धूप में चला रहा है तथा स्वयं आराम से घोडे़ पर बैठा है। (Moral Stories | Stories)
यह सुनकर पिता ने पुत्र को घोड़े पर बैठाया तथा स्वयं पैदल चलने लगे...
यह सुनकर पिता ने पुत्र को घोड़े पर बैठाया तथा स्वयं पैदल चलने लगे। आगे जो लोग मिले, वे बोले, ‘‘देखो पुत्र कितना निर्लज्ज है! स्वयं युवा होकर भी घोड़े पर बैठा है तथा पिता को पैदल चला रहा है"। यह सुनकर दोनों घोड़े पर बैठ गए। आगे जाने पर लोग बोले, ‘‘ये दोनों ही भैंसे के समान हैं तथा छोटे से घोडे़ पर बैठे हैं। घोड़ा इनके वजन से दब जाएगा"। यह सुनकर दोनों पैदल चलने लगे। कुछ अंतर चलने पर लोगों का बोलना सुनाई दिया, ‘‘कितने मूर्ख हैं ये दोनों? साथ में घोड़ा है, फिर भी पैदल ही चल रहे हैं।’’ (Moral Stories | Stories)
इतना कुछ सुनने के बाद पिता-पुत्र ने एक डंडे पर घोड़े को उल्टा लटका लिया और चलने लगे लोग फिर उन्हें मूर्ख कहने लगे कि घोड़ा बैठने के लिए है न कि उल्टा लटकाने के लिए। दोनों अपना-अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। (Moral Stories | Stories)
शिक्षा- कुछ भी करें, लोग आलोचना करते ही हैं। इसलिए उस ओर ध्यान न देते हुए स्वयं को जो योग्य लगता है, वैसा आचरण करना ही हितदायक है।लोगों का काम ही कहना है। (Moral Stories | Stories)
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